सोमवार, 8 जुलाई 2013

प्रतिभा

ऊची सोच हमेशा सोचो, मन में कुन्ठा मत लाओ ।


खुशहाली, सुख-समृद्धि आये, करके ऐसा दिखलाओ ।।



आशा रूपी दीप जलाकर, निराशाओं को दूर भगाओ ।

असहाय अपने को न समझो, कीचड़ में भी कमल खिलाओ ।।



दृढ़ इच्छा, शक्ति के बल पर, मन में अटल विश्वास जगाओ ।

कंकड़ से हीरा बनकर, प्रतिभा अपनी दर्शाओ ।।



आकाशगंगा, अनंत तारों में, अपना असतत्व बनाओ ।

धु्रव तारा की तरह, गगन में चमचमाओ ।।



कभी किसी पर आश्रित होकर, निर्जीव न बनजाओ ।

राख में अंगारा बन, स्वयं पहचान बनाओ ।।



पतझड़ से नीरस मौसम में, बसंत ऋतु सा बजूद बनाओ ।

चारों ओर बहारें हो, ऐसा जग में नाम कमाओ ।।



विपत्तियों से करो मुकाबला, कभी न घबड़ाओ ।

प्रकृति से लो सीख, कांटों में गुलाब खिलाओ ।।