गुरुवार, 31 जुलाई 2008

खुपिया बज्र

देश खडा बारूद ढेर पर, खेलें आतंकी खेल ।
करके चैलेन्ज ए-मेल भेजते, हुई सरकारें फेल ।।
हुई सरकारें फेल, नेता तू-तू मैं-मैं करते ।
भोले-भाले निरीह लोग, बेवजह निर्दोष मरते ।।
कभी साईकिल-कभी टिफिन में, दहशतगर्दी बेश ।
पल भर में क्या हो, भय में सारा देश ।।




बुलेटप्रूप जाकिट वाहन से, नेता चलते आज ।
आम नागरिक नहीं सुरक्षित, रहा कराह समाज ।।
रहा कराह समाज, सरकारें ढाढस बधाएं ।
घायल-मरने बालो को, रूपये देकर मरहम लगाएं ।।
सयंम-सयंम बोली रटते, इनके तरह-तरह के रूप ।
ऐसा समय आज है आया, हुई नाकाम बुलेटप्रूप ।।


सुरक्षा ऐजेन्सी नाकाम, केन्द्र-राज्य हैं दूर ।
राजनीति कर रोटी सेंकें, जनमानस मजबूर ।।
जनमानस मजबूर, लालच में आ जाता ।
दंगा-फसाद, तकलीफें सहता, फिर भी समझ न पाता ।।
नवीन तकनीकि आतंकी, सीख के देते परीक्षा ।
अपना वही पुराना ढर्रा, खतरे में आज सुरक्षा ।।




आज देश की सभी ऐजेन्सी, आपस मैं मिल जाओ ।
नाश हो आतंकवाद का, ऐसा बज्र बनाओ ।।
ऐसा बज्र बनाओ, सुदृढ हो खुपिया तंत्र ।
सुख-सुविधाओ से परिपूर्ण हों, इन्हें दो ऐसा मंत्र ।।
बाहर से दुश्मन दिखता है, घर के भेदी इन्हें न लाज ।
आतंकवाद का हो सफाया, ऐसा कानून लाओ आज ।।

मंहगाई

कभी नहीं था सोचा मैंने, ऐसा भी हो सकता है ।
बिन ईधन के चलना मुश्किल, सब की हालत खसता है ।।
सब की हालत खसता है, ईधन हुआ मंहगा नशा ।
अमेरिका-ईरान संबंधों से, हुई यह दुर्दशा ।।
कच्चे तेल की बढती कीमत, परेशान हैं आज सभी ।
दादा गिरी, आपना असत्तव, असर दिखाये कभी-कभी ।।



बिगडा पर्यावरण, कहीं है बाढ-कहीं है सूखा ।
कृषि उत्पादन कमी आई है, आज किसान है भूखा ।।
आज किसान है भूखा, लागत ज्यादा उत्पादन कम ।
कर्जा चुका नहीं है पाता, तोड रहा है दम ।।
सुरसा जैसा मुँह फैलाये, मंहगाई ने झिगडा ।
विदेशी आनाज मगाया, देशी बजट है बिगडा ।।



मकान, सोना चाँदी, हुई आज है सपना ।
बेरोजगारी बढती जाती, रंग दिखाती अपना ।।
रंग दिखाती अपना, आज है मुश्किल शिक्षा पाना ।
भ्रष्टाचार का जाल है फैला, योग्य-अयोग्य न जाना ।।
शादी के संजोये सपने, मंहगाई फीके पकवान ।
कर्मचारी, मजदूर, किसान, बचा सके न आज मकान ।।




नेता की परिभाषा बदली, पाखंडी बनाया बेश ।
कभी भूनते तंदूरों में, बाहुबली चलाते देश ।।
बाहुबली चलाते देश, धर्म-जाति आपस लडबाते ।
सत्ता में आ जाते , वेतन सुख-सुविधाएं पाते ।।
सब कुछ मंहगा मौत है सस्ती, लाज के ये क्रेता ।
कुछ नही सिद्धांत इनका, भ्रष्ट आचरण नेता ।।



दर-दर बढती जनसंख्या, भूमि है स्थाई ।
कृषि भूमि में बनी हैं बस्ती, ऐसी नौबत आई ।।
ऐसी नौबत आई, जनसंख्या पर रोक लगाओ ।
नूतन तकनीती से, आवश्यकता पूर्ण कराओ ।।
विज्ञानकों का कर आव्हान, अबिष्कार को कर ।
पर्यावरण का कर संरक्षण, रोको मंहगाई की दर ।।

यही है भैया सावन

(कुन्डलिया)

सावन आयो-बर्षा लायो, इन्र्द धनुष की रचना ।
सजनी चली मायके अपने, साजन देखें सपना ।।
साजन देखें सपना, मिलन की बाँधे आस ।
वैरी पपीहा पिहु-पिहु बोले, विरह बढाये प्यास ।।
डाली-डाली-डले हैं झूले, मौसम हुआ सुहावन ।
सखी-सहेली करें हठकेली, झूम के आया सावन ।।



हरियाली की ओढ़ चुनरिया, वर्षा रानी आई ।
पैरों में झरनों की झर-झर, पायलिया झनकाई ।।
पायलिया झनकाई, रंग-बिरंगे पुष्प खिले बालो में हो गजरा ।
नदियाँ-नाले कुआँ तल ईयाँ , चारों ओर नीर का कजरा ।।
मयूर नृत्य कर रहस रचाये, चाल चले मतवाली ।
उगी हैं फसलें भाँति-भाँति की, गहना पहने हरियाली ।।




दामिनि दमिके-मेघा गरजें, रिम-झिम बरसे नीर ।
गये पिया परदेस भीगें तन-मन, बढती जाये पीर ।।
बढती जाये पीर, तन में आग लगाये ।
कुहू-कुहू कोयल की बोली, मन में हूक उठाये ।।
विरह की मारी दर-दर डोले, इन्तिजार में कामिनि ।
आजाओ मिल जायें ऐसे, जैसे मेघा-दामिनि ।।


सावन के शुभ सोमवार, महाकाल की पूजा ।
चले काँबडिया अमरनाथ को, ऐसा नहीं है दूजा ।।
ऐसा नहीं है दूजा, भाई-बहिन का प्यार ।
रक्षाबंधन ऐसा बंधन, राखी का त्योहार ।।
हाथों मेंहदी रचाई, रहे सुहाग पावन ।
तरह-तरह मिष्ठान बने हैं, यही है भैया सावन ।।

शुक्रवार, 11 जुलाई 2008

सृष्टि रचना


मन में भाव जगा देती हैं,
करतीं हैं जब बात ।
ईश्वर तेरी अदभुत रचना,
आँखों सी सौगात ।।


मंथन से निकला अमृत जल,
सुरों को पान कराया ।
धरा रुप विष्णु ने मोहिनी,
असुर न जाने माया ।।
हुये देवगण अजर अमर,
सम्मोहन शक्ति नें दी मात ।

ईश्वर तेरी ..........


सृष्टिकर्ता ब्रम्हा जी ने,
ऐसा खेला खेल ।
कामदेव को भस्म कराकर,
शिव-शक्ति का मेल ।।
शुरु हुआ सृष्टि विकास,
त्रिनेत्र बदले हालात ।
ईश्वर तेरी ..........

गुरुवार, 21 फ़रवरी 2008

प्रेरणा



ये पत्थर की मूरत मोहनी सूरत, सत सत तुम्हें प्रनाम ।
यह गीत समर्पित आपके नाम ।।


मेरा मन से साथ दिया, हम इसे भूल ना पाये ।
प्रेरणा आपकी पाकर हम, गद-गद फूले नही समाये ।।
धन्य हूँ मैं जो आपके कारण, हुआ है मेरा मान ।
ये पत्थर की मूरत ------------------



दर्शन पाकर मन में रखकर, कार्य किया जाता है ।
कठिन से कठिन कार्य भी, पल भर में हो जाता है ।।
कभी क्रोध की कभी शुशोभित, आभा है मुसकान ।
बसी हृदय में छबि आपकी, रहती सुबह और शाम।।

ये पत्थर की मूरत ------------------


मैने जिसको दिल से माना, हुआ ना वो हमारा।
उसी की खातिर टूट गया, अपना दिल बेचारा ।।
यदि बिश्वास उठा दुनिया से, क्या होगा अनजाम ।

ये पत्थर की मूरत ------------------
जिस जिस पर है किया भरोसा, उसी ने है मुंह मोढ़ा ।
कही का नही है छोडा, हो गये वे अनजान।

ये पत्थर की मूरत ------------------

यादों में रोते रोते, रशिक हुये बेहाल ।
इसी में गुजरे साल ।।
आपके प्रति आज हृदय में, श्रध्दा और सम्मान ।

ये पत्थर की मूरत ------------------
हमें आप पर पूर्ण भरोसा, बिश्वास जगाये रखना ।
टूट ना जाये सपना ।।
बिश्वास पर जग कायम है, उसका रखना ध्यान ।
ये पत्थर की मूरत ------------------

प्रीत


दिल अपना, मन पराया हो जाता है ।
ये कैसा अनुपम नाता, मन में प्रीत जगाता ।।



पहले होती है तकरारे, फिर हो जाता प्यार है ।
फिर होता दीवानापन, जिसकी दोस्ती मिशाल है ।।



कहां से आये कहां जाना, किस्मत का ये खेल है यार ।
कितना पावन स्थल यह, जहां पनपता अपना प्यार ।।




सुख दुख में हम साथ रहे, नाते हुये पुराने ।
साथ में रहकर कुछ नही जाने, जुदा हुये तब जाने ।।




रात ना देखें दिन ना देखें, यादें आना जाना ।
तनहाई में यादें संजोयें, प्रेम में मन बौराना ।।



आंखों के आंशु बतलाते, बिछुडने का अफ़साना ।
नेत्रों से ओझल होते ही, दिल में आन समाना ।।

बुधवार, 20 फ़रवरी 2008

पहेली


नारी शब्द बना पहेली, दुनियाँ समझ न पाई ।
जिस पल बेटी बनी धरा पर, खुशियाँ छाई बजी बधाई ।।
बाबुल की लाडली, बीरन की बहिना कहलाई ।

नारी शब्द बना पहेली, ---------------------------------------

चलते- फिरते गिरी भूमि पर, चोट लगी चिल्लाई ।
माँ ने लगा लिया आँचल से, थपकी दे-दे लोरी सुनाई ।।
दादाजी ने सुना कहानी, परी लोक की सैर कराई ।

नारी शब्द बना पहेली, ---------------------------------------

स्कूल पढने जाना, माँ का हाथ बटाना ।
सुसंस्कार पाये जीवन में , सीखा मान बढाना ।।
सदा रहे जीवन खुशहाल माँ से विध्या पाई ।

नारी शब्द बना पहेली, ---------------------------------------

धीरे-धीरे बडे हुये, बीत गया सब बचपन ।
अपना आँगन अपने नाते, सबने दिया अपनापन ।।
हुये सयाने मात-पिता को, शादी चिन्ता आई ।

नारी शब्द बना पहेली, ---------------------------------------

नाडी गुण मिलाते- फिरते, कुंडली गुण- अवगुन ।
धन लोभी दहेज माँगते, दर-दर भटक रहा मन ।।
'मृगतृष्णा' समान, अंधीं वर ढुडाई ।
नारी शब्द बना पहेली, ---------------------------------------


शहर-गांव खोजते घूमे, खाता पीता घर हो ।
कुल में मान, समाज प्रतिष्ठा, ऐसा बेटी वर हो ।।
सुसंस्कार भंडारो बाला, हो हमारा जमाई।

नारी शब्द बना पहेली, ---------------------------------------

वर -बधु के मधुर मिलन की, शुभ बेला है आई ।
दो कुटुम्ब हुये है एक, रब ने जोडी बनाई ।।
अरमानों के सपने सहेजे, गूँज उठी शहनाई।

नारी शब्द बना पहेली, ---------------------------------------

बीज से बनता पौधा, पौधा से पेड बने ।
पेड मे, लगी कली, कली से पुष्प बने ।।
पुष्प है बेटी माली बाबुल, ईश्वर ने यह रीति बनाई ।

नारी शब्द बना पहेली, ---------------------------------------

पुष्प लगे-लगे मुस्काये, बगिया रहे महकाये ।
अनजान सफ़र का राही, तोड इसे ले जाये ।।
बडे जतन से पाला पोषा, रितु जुदाई की आई ।

नारी शब्द बना पहेली, ---------------------------------------

माली बिलखा जाये, बीरानी बगिया छाये ।
सूनी बगिया देख के माली, पल-पल नीर बहाये ।।
बेटी पराया धन है, होती सदा पराई ।

नारी शब्द बना पहेली, ---------------------------------------

जैसी बगिया बबुल महकी, बेटी बैसी महकाना ।
अपने गुणों से बशीभूत कर, खुशियाँ सदा लुटाना ।।
सास- ससुर की सेवा में, रहना सदा सहाई ।

नारी शब्द बना पहेली, ---------------------------------------

रहन-सहन घर आँगन नूतन, नूतन, रिस्तेदार ।
पुनर्जन्म होता नारी का, जीवन में कई बार ।।
अनजाने लोगों में रह कर , नीचट पैठ बनाई ।

नारी शब्द बना पहेली, ---------------------------------------

मंगलवार, 19 फ़रवरी 2008

मिलन




बेर लगे गदराने, आम लगे बौराने ।
कलियाँ खिल कर फूल बनी, भँबर लगे मडराने ,।।
मौसम आसकाना, चलन लगी पुरवाई।
गूँज उठी शहनाई, रितु मिलन की आई।।

दिनकर बन आ जाओ, मन पंकज खिल जाये ।
शशि आभा की आश लगाये, खिलने कुमुदनी मचलाये।।
चातक मन गगन निहारे, बन चंदा, दे जा दिखाई ।

गूँज उठी-------------------------------------------------

एक बूँद स्वाति का पानी, सीप लगाये आश ।
मोती बन आ जाओ सजना, तुम सजनी के पास।।
देके अलौकिक यह नजराना, हिय में जाओ समाई ।

गूँज उठी-------------------------------------------------

मयूर नृत्य कर रहस रचाये, पपीहा चला बुझाने प्यास ।
मेघ चले भूमि से मिलने, सरिता चली सागर के पास ।।
इंद्रजाल में हुई बाबरी, रितु पावस की आई ।

गूँज उठी-------------------------------------------------

कैसे कटते दिन है उनके , कैसे कटती रतियाँ ।
मदमस्ती में खो-खो जाती, मिलन की करती बतियाँ ।।
साथ में खेली सखी सहेली, उनकी हुई सगाई ।

गूँज उठी-------------------------------------------------

मेरे सपनों के राजकुमार, हम हुये दीवाने ।
पल-पल तेरी राह देखती, आ जाओ अन्जाने ।।
दिल में मचा तूफान, कहाँ छिपे हरजाई ।

गूँज उठी-------------------------------------------------

नयन बिछाये राह निहारू, , मुझे पहनाओ कंगना ।
दीपक बन आ जाओ सजना, करो प्रकाशित अंगना ।।
मचल-मचल जाये मन, रितु बसंत की आई ।

गूँज उठी-------------------------------------------------

शिल्पकार पत्थर को गढके, मूरत में सजीबता लाये ।
जौहरी हीरा तरासे, तभी चमक है आये ।।
मन मंदिर में आन विराजो , सुनलो अरज हमाई ।

गूँज उठी-------------------------------------------------

सोमवार, 18 फ़रवरी 2008

सूखा


नओ बरस लैकें आओ,
नयी-नयी सौगात ।
शनीदेव की बक्र है दृष्टि,
उलट-पलट मात ही मात ।।

बीज बोव बरसो न पानी,
दुविधा में आ गओ इन्सान ।
बीज बुबाई,रकम गमाई,
निर्धन हो गयो किसान ।।
अब के बरस न भई बरसात ।

नओ बरस----------------------

कछू तो सोचो कछू भओ है,
खेती किसान की करतार ।
बिन खेती के घरी न बीते,
ऊपर से मँहगाई मार ।।
भोतई बिगड गये हालात ।

नओ बरस----------------------

बसंत भओ है पतझड,
रितुअन ने पल्टी खाई ।
सूके तेसू मौर आम के ,
हरे रूख की सामत आई ।।
देखो अखियन से नही जात ।

नओ बरस----------------------

नदियाँ नारे, कुआँ तलैयां,
पानी बचो है नईयाँ ।
दर-दर भटक रहे है सारे ,
किलपत भूखी गईयाँ ।।
अब काँ सें कैसे है खात ।

नओ बरस----------------------


पानी ढूढत-ढूढत,
जीव जन्तु है आ रये ।
घात लगायें बैठे शिकारी,
मार-मार कें खा रये ।।
जीव-जन्तु हो रये समाप्त ।

नओ बरस----------------------

हरी-भरी फसलन हाँ देखो,
मन मस्ती में छात ।
सूनो खेत देख कें भईया,
पाँव धरे नहीं जात ।।
बैठे धरें करम पे हात ।

नओ बरस----------------------

छोटे-छोटे बच्चे बिलखें,
फूट-फूट कें रो रये ।
मेहनत कश मजदूर किसान
देख कें आपा खो रये ।।
धरें सरकार हात पे हात ।

नओ बरस----------------------

भूखे प्यासे ढोर रभा रये ,
देख कें रो-रो आवे ।
येसो कभऊ नहीं है देखो ,
लगत कहाँ भग जावे ।।
कैसे कटै अन्धेरी रात ।

नओ बरस----------------------

जनम-जनम रिस्ते नाते,
पानी नें बिसराये ।
लोकलाज सब भूल भाल कें,
निकर घरन सें आये ।।
पानी कैंसें है मिल पात ।

नओ बरस----------------------

कुआँ पम्प और खाद बीज हाँ ,
बैंक सें कर्जा लओ ।
ब्याज पै ब्याज लगो जब ई पै ,
जुर कें मुलक्को भयो ।।
अब काँ सें कैसें चुकात ।

नओ बरस----------------------

जिनके कुआँ में हतो तो पानी ,
उन नें बोई चना उनारी ।
जाडो भओ लग गयो तुसार ,
फसल भई सब कारी ।।
बिजली काट दई सब शासन नें अब की सें हैं कात ।

नओ बरस----------------------

बिजली पानी कछू है नईयाँ,
फिर भी बिल हैं आये ।
जुर कें रूपया इतनो हो गयो,
बसूली सरकार कराये ।।
सुनत नहीं कोऊ की बात ।

नओ बरस----------------------

सरकार करो घोषित सूखा ,
सूखा राहत आओ।।
लाँच खोर अफसर नेतन नें,
मिल बाट कें खाओ ।।
बैठे हते लगायें घात ।

नओ बरस----------------------

रविवार, 17 फ़रवरी 2008

हरित क्राँति


कृषि प्रधान देश है अपना,
मेरा देश महान ।
सरकारें हैं आती- जाती,
नहीं किसी को ध्यान ।।
हरित क्राँति सत्-सत् प्रणाम ।

खून-पसीना सीच-सीच कर ,
देता जीवन दान ।
रूखी-सूखी रोटी खाकर,
पैदा करता धान्य ।।
दिन-रात करे तू काम ।

हरित क्राँति सत्-सत् प्रणाम ।

ऊबड-खाबड पडी धरा को,
तू उपजाऊ बनाये ।
कुंआ खोद, मेहनत करके ,
भगीरथी बहाये ।।
सुबह से लेकर शाम ।

हरित क्राँति------------------

उत्तम कोटी बीज डालकर,
चला रहा है हल ।
ऊर्वरा शक्ति बढाने
खाद डालता पल-पल ।।
कीट नाशकों का अन्जाम ।

हरित क्राँति------------------

बच्चों सा करते संरक्षण,
अच्छी फसल उगाते ।
कली से बनता फूल,
फूल से फल बन जाते ।।
आशा है, फसलें भरें गोदाम ।

हरित क्राँति------------------

कभी है पडते ओले, सूखा,
कभी बरसता भारी पानी ।
साहूकारों व बैंकों से
लेकर कर्जा करें किसानी ।।
जीना हुआ हराम ।

हरित क्राँति------------------

व्याज देते-देते,
वक्त बीतता जाता ।
मूल चुका नहीं पाते,
खेत-मकान सभी बिक जाता ।।
होता बुरा अन्जाम ।

हरित क्राँति------------------

जागो कृषक जवानो,
नूतन जन चेतना जगाओ ।
तिरंगे के हरे रंग की लाज,
आप के हाथ इसे बचाओ ।।
आश लगाये देख रहा आवाम ।

हरित क्राँति------------------

कृषक नीति में कर संशोधन ,
उध्योग का दर्जा दिलाना ।
विदेशी अन्न की नहीं जरूरत ,
स्वदेशी अन्न उगाना ।।
फिर आये नीचट परिणाम ।

हरित क्राँति------------------

शराब


शराब शब्द के हर अक्षर में
छिपा हुआ उन्माद।
सड-सड, सड के बने शराब,
रूबा-रूबा करे वर्बाद।।

अतिथि के स्वागत सत्कार में,
मिलते थे चाय के प्याले ।
बैभवता के भीषण युग में,
छलक रहे हैं जाम के प्याले ।।

परोसो जाता साथ शबाव ।
सड-सड, सड के------------------


पीते ही मदहोशी आये,
दिल में फिर उन्माद मचाये ।
क्या है कहना, क्या है करना,
जहां भी देखो वहीं है मरना ।।
भूल गये अपनी मर्याद ।

सड-सड, सड के------------------


घर के अन्दर अफरा-तफरी,
बाहर गरज रही आबाज ।
शराबी के संबंधी कहकर,
करता है अपमान समाज ।।
संबंधी से करें विवाद ।

सड-सड, सड के------------------

खाना जब तक खाना नहीं,
जब तक उसमें न हो जाम।
उठते-बैठते नहीं है बनता,
जिस्म हुआ वेकाम।।
छाता जाता है प्रमाद ।

सड-सड, सड के------------------

तन-मन सुध सब भूल रहे,
गटर पडे बेहोश।
धन की बर्बादी है होती,
शरीर बचा नहीं जोश।।
होते घर में हैं संवाद।

सड-सड, सड के------------------

वाहन नशे में चलाने के,
लोग हुये शौकीन।
दुर्घटना को दिया निमंत्रण,
माहौल हुआ गमहीन।
संबंधी विलखें करते जात याद।

सड-सड, सड के------------------
स्वाभिमान से जीना है तो,
शराब का पीना छोडो।
घर में सुख समृद्धि आये,
इंसानी नाता जोडो।।

ईज्जत से जीना सीखो सदा रहो आबाद ।
सड-सड, सड के बने शराब,
रूबा-रूबा करे वर्बाद।।

बुधवार, 13 फ़रवरी 2008

दुर्घटना


देखा मंजिर ऐसा,
हो गया हैरान ।
कहीं पडीं थीं लाशें
तडफ रहे इंसान ।।
देखा मंजिर------------
चीख-पुकारें चारों ओर,
कराह रहे मचा है शोर ।
यह विभित्स करूणाई नजारा,
ढूढ रहे थे कोई सहारा ।।
चले थे नूतन सपने संजोने,
होनी से अनजान ।
देखा मंजिर-------------------
नन्हें-नन्हें बच्चे बिलखें
माँ-बाप का उठा है साया ।
किसी के कुल के दीपक बुझ गये,
बहिनों ने सिन्दूर गमाया ।।
कुल के कुल , उजड गये ,
घर के घर हुये बीरान ।
देखा मंजिर--------------------
हँसी-खुशी से चले थे घर से ,
लेकर अभिलाषायें मन में ।
कैसे -कैसे खुआव थे देखे ,
जो अधूरे रह गये, पल भर में ।।
क्या था करना , हुआ क्या ,
छोड गये अपना जहाँन ।
देखा मंजिर--------------------
हाथ - पैर के टुकडे हो गये ,
फंसे पडे वाहन बेहोश ।
सिसक-सिसक के साँसे लेते ,
सोते जाते मौत अगोश ।।
खून से लथपथ विकृत काया ,
चित्त भंग हुये भूले पहचान ।
देखा मंजिर--------------------

तेजी की रफ़्तार के युग में ,
धैर्य से चलना सीखो ।
दुर्घटना से देर भली,
इस राह पर चलना सीखो ।।
भागम भागी , लोभ में पड कर ,
यह होता अंजाम ।

मंगलवार, 12 फ़रवरी 2008

प्रेमकस्तूरी



  • मनुवा प्रेम सुधा वर्षा ले ।
    मीठी वाणी बोल हमेशा,
    प्रिय बचन बतला ले ।।
  • मनुवा प्रेम--------------------

    राग, व्दवेश हलाहल पीकर,
    नीलकँठ बन घृणा पचा ले ।
    छण भंगुर दो दिन का जीवन,
    इसको अमर बना ले ।।
  • मनुवा प्रेम--------------------


    मानस तन मुशिकल से मिलता,
    पल-पल मूल्य चुका ले ।
    प्रेमकस्तूरी बसी हृदय में,
    ढूढ रहे मद वाले ।।
  • मनुवा प्रेम--------------------

    अहंकार जैसे कीचड में,
    क्षमा-दया का कमल उगाले ।
    प्रीत मणि की रीत निराली,
    लोह लगे सोना बना ले ।।
  • मनुवा प्रेम--------------------


    कुविचार मन से त्यागकर,
    सदाचार अपना ले ।
    मनोयोग शक्ति के बल पर,
    जो चाहे वो पा ले ।।
  • मनुवा प्रेम--------------------


    करम तुँ ऐसे कर जा प्रणी,
    नीचट प्रेम बना ले ।
    विछरडें पर जब यादें आयें,
    दुनियाँ नीर बहा ले ।।
  • मनुवा प्रेम--------------------

सोमवार, 11 फ़रवरी 2008

नारी शक्ति







घर की चार दिवारी में भी,
नही सुरक्षित है नारी।
घर के बाहर तो फ़ैली है,
भारी भरकम महामारी।।

घर की चार-----------------

घर में आने से पहले,
विज्ञान का है अभिशाप ।
कोख में कन्या होने पर,
गर्भपात कराते माँ-बाप ।।
आने से पहले हो जाती,
जाने की तैयारी ।

घर की चार-----------------

बेटा की चाह,
यह नोबत लाती है ।
पत्नी के होते,
शादी रचाई जाती है ।।
रूढिवादिता के चलते,
जनसंख्या में वृध्दी है जारी ।

घर की चार-----------------

बेटी पैदा होने से,
सन्नाटा छा जाता है ।
माँ-बाप कुटुम्ब कबीले में
भूचाल सा आ जाता है ।।
नन्ही जान ने,
नही देखी दुनियाँदारी ।

घर की चार-----------------

बेटा-बेटी का अन्तर,
स्पष्ट नजर जब आता है ।
बेटा को कुल का "दीपक"
बेटी को पराया जाना जाता है ।।
शिक्षा, रहन-सहन में,
नारी का शोषण है भारी ।

घर की चार-----------------

अभी समय है सावधान !
1-2 बच्चे परिवार में शान ।
बेटा हो या बेटी,
मानो ईश्वर का "वरदान" ।।
आने बाला भबिष्य,
है प्रलयकारी ।

घर की चार-----------------

नारी शक्ति है, अबला नही,
करो इस का सम्मान ।
सुनीता, इंदिरा जी,पर
देश को है अभिमान ।।
नर-नारी के अनुपात में,
गिरावट से लाचारी ।

घर की चार-----------------

शनिवार, 9 फ़रवरी 2008

निछावर


बाप मताई नें न समझो,
मूढ़े मोरें धर दयो ।
जनम मोरो कर्जा चुकावे भयो ।।

कर्जा लेकें पालोपोसो,
भारी कर्जा कर दयो ।
कर्जा में जब भारी गुथ गये,
गाने घर है धर दयो ।।

जनम मोरो---------------


भये सियाने होश समारी,
हमें रयो न गयो ।
हल्के-हल्के भाई-वहिन हाँ,
जुम्मे अपने कर लयो ।।

जनम मोरो------------------


पढाओ-लिखाओ ब्याव कराओ,
एक सें दो कर दयो।
नाम बडे और दर्शन छोटे,
घर में ऐसो कर दयो ।।

जनम मोरो------------------

शान शौकत रखवे,
मोये गाने दर दयो ।
मैं जब जब कछू बोलो चालो,
तार-तार कर दयो ।।

जनम मोरो------------------

भाई का है फ़र्ज बताकें,
मोसे ऐसो कह दयो ।।
कुल अपने की लाज बचावे,
मैं सहमों सो रह गयो ।।

जनम मोरो------------------

घर के मुखिया पे जो बीते,
धर सामने दयो ।
बाप-मतारी के करमन नें,
बँधुआ मोहाँ कर दयो ।।

जनम मोरो------------------

भये सियाने भाई-वहिन जब,
बोले मोहाँ का कर दयो ।
बाप मतारी ताने देवें,
वहुयें कहें सब धर लयो ।।

जनम मोरो------------------

ऐसो सब को कहवो,
मन में मोरें गढ गयो ।
जी के लानें मैनें अपनो
जीवन निछावर कर दयो ।।

जनम मोरो------------------

बच्चे मोसें पूछें दद्दा,
मोहाँ का कर दयो ।
जबाब उन्हें मैं दे न पाओ
दिल पै पथरा धर लयो ।।

जनम मोरो------------------

आशा


माँझी हो न निराश,
जीवन सागर में उठते ज्वार ।
प्रभु में आशा रख, विश्वास,
खेता चल पतवार ।।



सुख-दुख का मेल है,
प्रकृति का खेल है।
खेलता चल इसे,
हिम्मत न हार ।।
जीवन सागर----------------


शशि हो न उदास,
गृहण के बाद आये पूनम की रात ।
हर रजनी के अंत में, आता सदा प्रभात
वक्त का कर इंतिजार।।
जीवन सागर --------------

क्रांति के बाद ही,
होता सदा सुधार।
पतझर के बाद आये,
बसंत बहार।।
जीवन सागर---------------

दृढ हो संकल्प,
अटल रख विश्वास।
धैर्य और साहस से,
सिंधु करेगा पार ।।
जीवन सागर----------------

बुधवार, 6 फ़रवरी 2008

संस्कृति



जब से बाहर वालो भैया,
भीतर है पिड आओ ।
संस्कृति हाँ चौपट कर दओ,
सबरो खोज मिटाओ ।।


बरात चलबे हाँ तैयार
बैलन माला घुँघरुदार ।
चल वे गाडी,कहरवा होवे
बराती मदमस्ति में खोवे ।।


जनवासे में बसी बरात ।
गाडी ढिल गयी,पहुंची बात ।।
परोसी ने काम काज जमाओ
जैसे उनके घरे कौउ आओ ।
इतनो नीको प्रेम हमाओ,
तनक देर में सबे नसाओ ।।

जब से बाहर...........................


नाऊ पंडित रिस्तेदार,
करें जाकर सबको सत्कार ।
गले में रये हैं मालाडार,
पालकी ले आये कहार ।।
पहले आयी है मिर्चवाई,
फिर आयी है खूब मिठाई ।
तीन दिना लो बरातें होवें ।
नौटंकी राई में खोवें।।

कैसो दिन अब जो आओ ।
रात भरे में घरे भगाओ।।
जब से बाहर...........................
ना कभी आगी परचाई,
परोसी के घर से लै आई ।
पुरा परोस के सब जुर आयीं
संगें उरसा, बिलना लायीं।।
बेलन बिन पैस्सन मेन आयी,
जिबनरे कि गरी गयी ।
लुच ई बना कर सबे खवाई
आव भगत से पातें जिमाई ।।
अब नओ जमानो आओ ।
ठारें -ठारें सबे खवाओ।।

जब से बाहर...........................
पशुधन मिलत दहेज हतो तो
दूध दही घी खावे ।
अब तो टीवी मिलन लगो है,
घर में आग लगावे ।।
टीवी को ऐसो प्रभाव
बीमारी सो हो गओ।।
किस्सा कहानी भूले बिसरे।।
मन फ़िलमन में खो गओ।।।
सीडी को जमानो आओ ।

जब से बाहर...........................
टूट रहें हैं घर और दुवार
सबरे बदल गये संस्कार ।
उन्ना-लत्ता ओछे कर दये
तन को हो रहो है रुजगार।।
जहां होत ती लीलायें,
पायल की झनकारे होयें ।
उते हो अधनंगे नाच,
मन बिलासता में खोयें।।
ऐसो समय को भवो बदलाओ ।
फ़िरंगी पहनावा अपनाओ ।।

जब से बाहर...........................

पंच करत ते उतैयी फ़ैसला,
कोट मैं लग रये बरसें ।
पैसा बाले मजा उडावे,
गरीब न्याय हाँ तरसें ।।
स्वदेशी चीजें बस्तु भूले,
विदेशी छा गये आज बज़ार ।
नयी- नयी बीमारी हैं आयीं,
हो रओ भारी बंटाढार ।।
नयी सदी मैं पै जमाओ ।
जब से जनो अपनो पराओ ।।

जब से बाहर...........................

दूध बुंदेली, विदुषी पहचान,
जानत हतो सकल जहान,
एक सें एक भये हैं योद्दा
ईश्वरी जैसे कवि महान
घाट-घाट को पानी मिलकें,
ऐसो भव बदलाव,
दूध को दूध पानी को पानी,
फ़िर सें इसे बनाव,
धरा बुंदेली कला प्रेमियो,
मिल-जुल हांथ बटाओ

जब से बाहर...........................

मंगलवार, 29 जनवरी 2008

रितु


मानस जीवन रितुओं जैसा
पल पल बदला जाये ।
कभी खुशी की किरने फूटे
कभी गमो के साये ।।


ग्रीष्म रितु की धूप ढलने का
छाओं मेन करना इन्तजार ।
नीरस पतझर बाद
आती बसन्त बहार ।।

प्रकृति ने यह नियम बनाये
धूप छावँ के खेल खिलाये ।
शीत रितु की निष्ठुर ठंडी में
आशा रुपी आग जलाओ ।
कोहरे सी समस्याओं को
अपने जीवन से दूर भगाओ ।।

अंधेरा छटेगा
प्रभात प्रकाश लाये ।
वर्षा रितु के सैलाबों में
नैइया बिपत्तियों में फ़ँस जाये ।
धैर्र ना खोना मन का प्राणी
साहस जीवन नैया पार लगाये ।।

प्रभू में बिश्वाश
रखना बनाये ।
दृढ इच्छा शक्ति के बल पर
ईश्वर से है बिनय हमारी ।
जो आशायें सन्जोई हमने
वो सब हों शुभ मंगल कारी ।।


नूतन साल के शुप्रभात पर
ललित वसंत रितु है आये ।
जीवन में खुशहाली लेकर
अभिलाषा के सुमन खिलाये ।।

सोमवार, 28 जनवरी 2008

मधुवन


मधुवन मध्य मनोरम सरिता
सुन्दरता की छटा निराली
चारो ओर सलोने पर्वत
हरयाली की चादर ओढे
लगते है प्रतिभाशाली


झर-झर झर-झर झरने झरते
पवन बह रही है मदवाली
झूम रहे तरुओ से निकले
सात सुरों की राग निराली

इन्द्र धनुषी सुमन खिलकर
दसो दिशाये सुगंधित करते
लगते है बैभवशाली
भौरे गुनजन करते तिन पर
सत रंगी तितली परियां
मन को देती खुशहाली

रंग बिरंगे सुंदर पंछी
कलरव करते मनहारी
मृगो के छौने फ़ुदक-फ़ुदक कर मन हरते है
मोर पपीहा कोयल बोले
रितुओं की करते अगवानी

तरंगनि तट पर जलचर पंछी
जलधि यान से तैर रहे है
निर्मल जल में रंग रंगोली
मीने करती हटकोली
कमल कुमदनी खिले हुये है
रवि शशि की है मेहरवानी

मिल जुल कर के आगे बढना
सरिता दे रही निर्देश
जीना है तो जियो औरों को
मधुवन देता है संदेश

कामदेव रति बिचरन करते
मधहोशी मय नीचट प्याली
मधुवन मध्य मनोरम सरिता
सुन्दरता की छटा निराली

रविवार, 27 जनवरी 2008

ॐची सोच


ॐची सोच हमेशा सोचो,
मन मैं कुनठा मत लाओ !


दृढ़ इच्छा शक्ति के बल पर,
मन में अटल विश्वास जगाओ !
कंकर से भी हीरा बनकर'
प्रतिभा अपनी दर्शाओ !!
ॐची सोच हमेशा -------------------


आकाश गंगा अशंख तारो में
अपना असत्तव बनाओ !
ध्रुव तारे की तरह,
गगन मंडल में जगमगाओ !!
ॐची सोच हमेशा -------------------


विपत्तियों से करो मुकबला,
कभी ना घबराओ !
प्रकृति से लो सीख,
काटो में गुलाब खिलाओ
ॐची सोच हमेशा -------------------


कभी किसी पर आस्रित होकर
निरजीव ना बन जाओ !
राख में अंगारा बन,
स्वयँ पहचान बनाओ !!
ॐची सोच हमेशा -------------------


आसहाय अपने को ना समझो,
निराशाओं को दूर भगाओ !
आशा रुपी दीप जलाकर,
कीचड में भी कमल खिलाओ !!
ॐची सोच हमेशा -------------------


पतझर से नीरस मौसम में,
बसंत रितु सा बजूद बनाओ !
चारो ओर बहारे हो,
जग में ऐसा नाम कमाओ !!
ॐची सोच हमेशा -------------------

(मंथन)


हँस लो गा लो,
खुशी मना लो ।
मानस तन मुशकिल से मिलता,
छढ़ -छढ़ मूल्य चुकालो ।।

मनोभावनाओ का मंथन ,
जीवन सागर हलचल ।
समस्याये सी सौगाते है,
खुशियो सा अमृत जल ।।
मिल जुल इनको पा लो ।

हँस लो ----------------

जीवन दिवस समान,
उदित हुआ आया अवसान ।
पल-पल खुशियां भर दो,
अमिट रहे सदा मुसकान ।।
ऐसा ध्येय बना लो ।

हँस लो --------------------


जग में ऐसा कोई नही ,
जो मानस ना कर पाये ।
निरजीव पाषान तरासे,
सजिवता ले आये ।।
ऐसा नाम कमा लो ।

हँस लो --------------------


नूतन बर्ष की नव बेला में,
उदित प्रभा का बंदन ।
हो मन की इच्छाये पूरी,
करते है अभिनंदन ।।
मंजिल अपनी पा लो ।


हँस लो --------------------