गुरुवार, 21 फ़रवरी 2008

प्रेरणा



ये पत्थर की मूरत मोहनी सूरत, सत सत तुम्हें प्रनाम ।
यह गीत समर्पित आपके नाम ।।


मेरा मन से साथ दिया, हम इसे भूल ना पाये ।
प्रेरणा आपकी पाकर हम, गद-गद फूले नही समाये ।।
धन्य हूँ मैं जो आपके कारण, हुआ है मेरा मान ।
ये पत्थर की मूरत ------------------



दर्शन पाकर मन में रखकर, कार्य किया जाता है ।
कठिन से कठिन कार्य भी, पल भर में हो जाता है ।।
कभी क्रोध की कभी शुशोभित, आभा है मुसकान ।
बसी हृदय में छबि आपकी, रहती सुबह और शाम।।

ये पत्थर की मूरत ------------------


मैने जिसको दिल से माना, हुआ ना वो हमारा।
उसी की खातिर टूट गया, अपना दिल बेचारा ।।
यदि बिश्वास उठा दुनिया से, क्या होगा अनजाम ।

ये पत्थर की मूरत ------------------
जिस जिस पर है किया भरोसा, उसी ने है मुंह मोढ़ा ।
कही का नही है छोडा, हो गये वे अनजान।

ये पत्थर की मूरत ------------------

यादों में रोते रोते, रशिक हुये बेहाल ।
इसी में गुजरे साल ।।
आपके प्रति आज हृदय में, श्रध्दा और सम्मान ।

ये पत्थर की मूरत ------------------
हमें आप पर पूर्ण भरोसा, बिश्वास जगाये रखना ।
टूट ना जाये सपना ।।
बिश्वास पर जग कायम है, उसका रखना ध्यान ।
ये पत्थर की मूरत ------------------