मंगलवार, 19 फ़रवरी 2008

मिलन




बेर लगे गदराने, आम लगे बौराने ।
कलियाँ खिल कर फूल बनी, भँबर लगे मडराने ,।।
मौसम आसकाना, चलन लगी पुरवाई।
गूँज उठी शहनाई, रितु मिलन की आई।।

दिनकर बन आ जाओ, मन पंकज खिल जाये ।
शशि आभा की आश लगाये, खिलने कुमुदनी मचलाये।।
चातक मन गगन निहारे, बन चंदा, दे जा दिखाई ।

गूँज उठी-------------------------------------------------

एक बूँद स्वाति का पानी, सीप लगाये आश ।
मोती बन आ जाओ सजना, तुम सजनी के पास।।
देके अलौकिक यह नजराना, हिय में जाओ समाई ।

गूँज उठी-------------------------------------------------

मयूर नृत्य कर रहस रचाये, पपीहा चला बुझाने प्यास ।
मेघ चले भूमि से मिलने, सरिता चली सागर के पास ।।
इंद्रजाल में हुई बाबरी, रितु पावस की आई ।

गूँज उठी-------------------------------------------------

कैसे कटते दिन है उनके , कैसे कटती रतियाँ ।
मदमस्ती में खो-खो जाती, मिलन की करती बतियाँ ।।
साथ में खेली सखी सहेली, उनकी हुई सगाई ।

गूँज उठी-------------------------------------------------

मेरे सपनों के राजकुमार, हम हुये दीवाने ।
पल-पल तेरी राह देखती, आ जाओ अन्जाने ।।
दिल में मचा तूफान, कहाँ छिपे हरजाई ।

गूँज उठी-------------------------------------------------

नयन बिछाये राह निहारू, , मुझे पहनाओ कंगना ।
दीपक बन आ जाओ सजना, करो प्रकाशित अंगना ।।
मचल-मचल जाये मन, रितु बसंत की आई ।

गूँज उठी-------------------------------------------------

शिल्पकार पत्थर को गढके, मूरत में सजीबता लाये ।
जौहरी हीरा तरासे, तभी चमक है आये ।।
मन मंदिर में आन विराजो , सुनलो अरज हमाई ।

गूँज उठी-------------------------------------------------