गुरुवार, 21 फ़रवरी 2008

प्रीत


दिल अपना, मन पराया हो जाता है ।
ये कैसा अनुपम नाता, मन में प्रीत जगाता ।।



पहले होती है तकरारे, फिर हो जाता प्यार है ।
फिर होता दीवानापन, जिसकी दोस्ती मिशाल है ।।



कहां से आये कहां जाना, किस्मत का ये खेल है यार ।
कितना पावन स्थल यह, जहां पनपता अपना प्यार ।।




सुख दुख में हम साथ रहे, नाते हुये पुराने ।
साथ में रहकर कुछ नही जाने, जुदा हुये तब जाने ।।




रात ना देखें दिन ना देखें, यादें आना जाना ।
तनहाई में यादें संजोयें, प्रेम में मन बौराना ।।



आंखों के आंशु बतलाते, बिछुडने का अफ़साना ।
नेत्रों से ओझल होते ही, दिल में आन समाना ।।