रविवार, 17 फ़रवरी 2008

शराब


शराब शब्द के हर अक्षर में
छिपा हुआ उन्माद।
सड-सड, सड के बने शराब,
रूबा-रूबा करे वर्बाद।।

अतिथि के स्वागत सत्कार में,
मिलते थे चाय के प्याले ।
बैभवता के भीषण युग में,
छलक रहे हैं जाम के प्याले ।।

परोसो जाता साथ शबाव ।
सड-सड, सड के------------------


पीते ही मदहोशी आये,
दिल में फिर उन्माद मचाये ।
क्या है कहना, क्या है करना,
जहां भी देखो वहीं है मरना ।।
भूल गये अपनी मर्याद ।

सड-सड, सड के------------------


घर के अन्दर अफरा-तफरी,
बाहर गरज रही आबाज ।
शराबी के संबंधी कहकर,
करता है अपमान समाज ।।
संबंधी से करें विवाद ।

सड-सड, सड के------------------

खाना जब तक खाना नहीं,
जब तक उसमें न हो जाम।
उठते-बैठते नहीं है बनता,
जिस्म हुआ वेकाम।।
छाता जाता है प्रमाद ।

सड-सड, सड के------------------

तन-मन सुध सब भूल रहे,
गटर पडे बेहोश।
धन की बर्बादी है होती,
शरीर बचा नहीं जोश।।
होते घर में हैं संवाद।

सड-सड, सड के------------------

वाहन नशे में चलाने के,
लोग हुये शौकीन।
दुर्घटना को दिया निमंत्रण,
माहौल हुआ गमहीन।
संबंधी विलखें करते जात याद।

सड-सड, सड के------------------
स्वाभिमान से जीना है तो,
शराब का पीना छोडो।
घर में सुख समृद्धि आये,
इंसानी नाता जोडो।।

ईज्जत से जीना सीखो सदा रहो आबाद ।
सड-सड, सड के बने शराब,
रूबा-रूबा करे वर्बाद।।