शुक्रवार, 11 जुलाई 2008

सृष्टि रचना


मन में भाव जगा देती हैं,
करतीं हैं जब बात ।
ईश्वर तेरी अदभुत रचना,
आँखों सी सौगात ।।


मंथन से निकला अमृत जल,
सुरों को पान कराया ।
धरा रुप विष्णु ने मोहिनी,
असुर न जाने माया ।।
हुये देवगण अजर अमर,
सम्मोहन शक्ति नें दी मात ।

ईश्वर तेरी ..........


सृष्टिकर्ता ब्रम्हा जी ने,
ऐसा खेला खेल ।
कामदेव को भस्म कराकर,
शिव-शक्ति का मेल ।।
शुरु हुआ सृष्टि विकास,
त्रिनेत्र बदले हालात ।
ईश्वर तेरी ..........