गुरुवार, 31 जुलाई 2008

खुपिया बज्र

देश खडा बारूद ढेर पर, खेलें आतंकी खेल ।
करके चैलेन्ज ए-मेल भेजते, हुई सरकारें फेल ।।
हुई सरकारें फेल, नेता तू-तू मैं-मैं करते ।
भोले-भाले निरीह लोग, बेवजह निर्दोष मरते ।।
कभी साईकिल-कभी टिफिन में, दहशतगर्दी बेश ।
पल भर में क्या हो, भय में सारा देश ।।




बुलेटप्रूप जाकिट वाहन से, नेता चलते आज ।
आम नागरिक नहीं सुरक्षित, रहा कराह समाज ।।
रहा कराह समाज, सरकारें ढाढस बधाएं ।
घायल-मरने बालो को, रूपये देकर मरहम लगाएं ।।
सयंम-सयंम बोली रटते, इनके तरह-तरह के रूप ।
ऐसा समय आज है आया, हुई नाकाम बुलेटप्रूप ।।


सुरक्षा ऐजेन्सी नाकाम, केन्द्र-राज्य हैं दूर ।
राजनीति कर रोटी सेंकें, जनमानस मजबूर ।।
जनमानस मजबूर, लालच में आ जाता ।
दंगा-फसाद, तकलीफें सहता, फिर भी समझ न पाता ।।
नवीन तकनीकि आतंकी, सीख के देते परीक्षा ।
अपना वही पुराना ढर्रा, खतरे में आज सुरक्षा ।।




आज देश की सभी ऐजेन्सी, आपस मैं मिल जाओ ।
नाश हो आतंकवाद का, ऐसा बज्र बनाओ ।।
ऐसा बज्र बनाओ, सुदृढ हो खुपिया तंत्र ।
सुख-सुविधाओ से परिपूर्ण हों, इन्हें दो ऐसा मंत्र ।।
बाहर से दुश्मन दिखता है, घर के भेदी इन्हें न लाज ।
आतंकवाद का हो सफाया, ऐसा कानून लाओ आज ।।