मंगलवार, 29 जनवरी 2008

रितु


मानस जीवन रितुओं जैसा
पल पल बदला जाये ।
कभी खुशी की किरने फूटे
कभी गमो के साये ।।


ग्रीष्म रितु की धूप ढलने का
छाओं मेन करना इन्तजार ।
नीरस पतझर बाद
आती बसन्त बहार ।।

प्रकृति ने यह नियम बनाये
धूप छावँ के खेल खिलाये ।
शीत रितु की निष्ठुर ठंडी में
आशा रुपी आग जलाओ ।
कोहरे सी समस्याओं को
अपने जीवन से दूर भगाओ ।।

अंधेरा छटेगा
प्रभात प्रकाश लाये ।
वर्षा रितु के सैलाबों में
नैइया बिपत्तियों में फ़ँस जाये ।
धैर्र ना खोना मन का प्राणी
साहस जीवन नैया पार लगाये ।।

प्रभू में बिश्वाश
रखना बनाये ।
दृढ इच्छा शक्ति के बल पर
ईश्वर से है बिनय हमारी ।
जो आशायें सन्जोई हमने
वो सब हों शुभ मंगल कारी ।।


नूतन साल के शुप्रभात पर
ललित वसंत रितु है आये ।
जीवन में खुशहाली लेकर
अभिलाषा के सुमन खिलाये ।।