रविवार, 27 जनवरी 2008

(मंथन)


हँस लो गा लो,
खुशी मना लो ।
मानस तन मुशकिल से मिलता,
छढ़ -छढ़ मूल्य चुकालो ।।

मनोभावनाओ का मंथन ,
जीवन सागर हलचल ।
समस्याये सी सौगाते है,
खुशियो सा अमृत जल ।।
मिल जुल इनको पा लो ।

हँस लो ----------------

जीवन दिवस समान,
उदित हुआ आया अवसान ।
पल-पल खुशियां भर दो,
अमिट रहे सदा मुसकान ।।
ऐसा ध्येय बना लो ।

हँस लो --------------------


जग में ऐसा कोई नही ,
जो मानस ना कर पाये ।
निरजीव पाषान तरासे,
सजिवता ले आये ।।
ऐसा नाम कमा लो ।

हँस लो --------------------


नूतन बर्ष की नव बेला में,
उदित प्रभा का बंदन ।
हो मन की इच्छाये पूरी,
करते है अभिनंदन ।।
मंजिल अपनी पा लो ।


हँस लो --------------------