शुक्रवार, 11 अगस्त 2023
सोमवार, 29 अप्रैल 2019
शनिवार, 23 सितंबर 2017
आज की नारी
गुरुवार, 24 अप्रैल 2014
मंगलवार, 31 दिसंबर 2013
सपरिवार आप सभी को बारंबार बधाई ।।
घन केशों में गजरा तारे, चक्षु सिंधु समान ।
तिमिर हरण चॉदनी, शशि आभा मुस्कान ।।
तारागण टूट.टूट, दे रहे विदाई ।
सपरिवार आप सभी को बारंबार बधाई ।।
हरियाली की ओढ़ चुनरिया, शवनम सतरंगी ऑचल ।
पदार्पण हो रहा, भूतल रहा मचल मचल ।
सात सुर की राग नियारी पवन चले पुरवाई ।
सपरिवार आप सभी को बारंबार बधाई ।।
सुख समृद्धि खुशहाली से, भर दे मन का उपवन ।
सुप्रभात की प्रथम किरण का करते हैं अभिनंदन ।।
नव वर्ष के सुस्वागत में, रवि किरण उग आई ।
खुशियों की सौगातें, मन मस्ती है लाई ।।
नई चेतना, नई उमंगे, मनोभावना छाई ।
सपरिवार आप सभी को बारंबार बधाई ।।
रखो प्रभु में आस्था, सपने हो साकार ।
धन धान्य और वैभव का, पल-पल मिले उपहार ।।
नये.नये आयामों से, छू लो नई ऊचाई ।
नव वर्ष मंगल मय हो, बारंबार बधाई ।।
सोमवार, 8 जुलाई 2013
प्रतिभा
खुशहाली, सुख-समृद्धि आये, करके ऐसा दिखलाओ ।।
आशा रूपी दीप जलाकर, निराशाओं को दूर भगाओ ।
असहाय अपने को न समझो, कीचड़ में भी कमल खिलाओ ।।
दृढ़ इच्छा, शक्ति के बल पर, मन में अटल विश्वास जगाओ ।
कंकड़ से हीरा बनकर, प्रतिभा अपनी दर्शाओ ।।
आकाशगंगा, अनंत तारों में, अपना असतत्व बनाओ ।
धु्रव तारा की तरह, गगन में चमचमाओ ।।
कभी किसी पर आश्रित होकर, निर्जीव न बनजाओ ।
राख में अंगारा बन, स्वयं पहचान बनाओ ।।
पतझड़ से नीरस मौसम में, बसंत ऋतु सा बजूद बनाओ ।
चारों ओर बहारें हो, ऐसा जग में नाम कमाओ ।।
विपत्तियों से करो मुकाबला, कभी न घबड़ाओ ।
प्रकृति से लो सीख, कांटों में गुलाब खिलाओ ।।
शुक्रवार, 14 जून 2013
किस्मत
मृगमारीचिका वह बन जाये मैं ठगा-ठगा रह जाऊ ।।
एक पल सोचू किस्मत मेरी ऐसा खेल खिलाये ।
समय नहीं है आया जब तक वह कैसे मिल पाये ।।
हार न मानू रार न ठानू कर्म किये मैं जाऊ ।
धैर्य और साहस के बल पर आगे कदम बढ़ाऊ ।।
आसानी से जो मिल जाये मना न उसमें आये ।
जाते-जाते वह मिल जाये मन फूला नहीं समाये ।।
शुक्रवार, 28 सितंबर 2012
बुधवार, 20 जुलाई 2011
शुक्रवार, 8 जुलाई 2011
किरण
वतन की खातिर, जज्बा मेरा,
पूरा आज शबाब पर ।
विश्वकप मुट्ठी में मेरे,
तिरंगा को शिरोधार्य कर ॥
जहॉ-जहॉं है भारतवासी,
नशे में चकनाचूर ।
देशभक्ति का जोश है दिल में,
लेते मजा भरपूर ।।
विश्व विजेता बनकर हमने,
परचम है लहराया ।
अर्द्धनंगा हू फिर भी मैनें,
देश का मान बढाया ॥
कन्या कुमारी-काश्मीर तक,
गया आज उन्माद भर ।
वतन की खातिर, ....................................
चाहे घूमो रेल में,
चाहे घूमो यान ।
फुटपाथों पर बैठकर,
बढ़ा सकते सम्मान ॥
नेताओं पर नहीं भरोसा,
घोटाले करते रोज ।
चाट रहे अधिकारी तलवे,
भ्रष्टाचारी नूतन करते खोज ॥
देख-देख देश की हालत,
आंखे गयीं हैं भर ।
वतन की खातिर, ....................................
राजनेता अधिकारी मिलकर,
रचते नये षड यंत्र ।
जातिवाद, क्षेत्रों में बॉंटे,
पंगू बना लोकतंत्र ॥
आश लगाये मैं हू बैठा,
सोचू बारंवार ।
किरण उदित हो जनमानस में,
दूर करे भ्रष्टतंत्र अंधकार ॥
क्रान्ति विश्व विजेता जैसी
अलख जगाओ घर-घर ।
वतन की खातिर, ....................................
गुरुवार, 1 अप्रैल 2010
मन पर विजय
सूझ-बूझकर कदम बढाना ।
करेंगी मन को बिचलित,
परेशानियां, करके कोई बहाना।।
सयंम व साहस को रखना,
भूल इसे न जाना ।
ठान लिया............................
राही तेरे जीवन पथ में,
सूनामी, आँधी तूफ़ान।
कठिन समस्या विपदाएं,
तहस-नहस करदें वीरान ।।
छण-छण मन को तड़फ़ायेंगीं,
दिल को ढाँढस बधाना ।ठान लिया............................
मन के हारे हार है,
मन के जीते जीत ।
ईश्वर पर तुम रखो भरोसा,
सब का है वो मीत।।
मानव मन अनमोल है,
मन को है समझाना ।ठान लिया............................
मंजिल को तुम लक्ष बना,
कौशिश जारी रखना ।
आशावादी सोच बनाना,
साकार सभी हो सपना ।।
मंजिल चरण तुम्हारे चूमे,
मन में सोच जगाना ।
ठान लिया............................
कोई काम होने से पहले,
कठिन बहुत है लगता ।
वही काम हो जाने से,
मन में आये सहजता ।।
इसीलिए तुम राही,
मन पर विजय बनाना ।।
ठान लिया............................
सोमवार, 3 अगस्त 2009

सोमवार, 6 अप्रैल 2009
प्रतिस्पर्धा
जब-जब जो भी है मागा,सुखद हुये अंजाम ।।
प्रेम मयी मधुर मुस्कान, बंद नेत्रों में छाये ।
गदगद हुये हम आज, फ़ूले नहीं समाये ।।
ये जिन्दगी मुझे है, तुझ से बेहद प्यार ।
खुशियाँ दे, चाहे गम, करते हैं शिरोधार ।।
भाग्य-कर्म मैं प्रतिस्पर्धा, धर्म-कर्म आधार ।
जो भी होता है जीवन में, करो उसे स्वीकार ।।
कर्तव्य और ईमानदारी, अपना रंग दिखाये ।
भला करो तुम दूसरों का, आप भला हो जाये ।।
सहयोग की रखो भावना, स्वयं पहचान बनाओ ।
लोग दुआएं दें तुम्हें , प्रेम सुधा बरसाओ ।।
कुछ करने का जज्वा लेकर, घर से बाहर आए ।
नही करेगे हम आराम, मन्जिल अपनी पाये ।।
सुख-दु:ख जीवन के साथी, हमे है इन से प्यार।
दृढ इच्छा शक्ति है मन मे, होगे सपने साकार ।।
सोमवार, 16 मार्च 2009
भर्ती का मौसम
भर्ती मानसून ने आकर, ऐसा जाल फ़ैलाया ।
राजा रंक फ़ँसे जाल में, कोई न बच पाया ।।
अपने-अपनो से छूटे, रिस्ते नाते टूटे ।
जैसे किया अपराध हो कोई, घर के लोग है रूठे ।।
बिछुड गया है साया।
भर्ती मानसून ने आकर ------------------
ज्यों-ज्यों दिन बढते जाते हैं, समस्यायें हैं आतीं ।
तरह-तरह के घर आयोजन, बात नहीं हो पाती ।।
रूपयों का हो रहा सफ़ाया ।
भर्ती मानसून ने आकर ------------------
उल्टी होती है किसी को, किसी को दस्त हैं लगते ।
कोई-कोई रातभर जगते, फिर भी जबरन हँसते ।।
घर में आकस्मक डेरा जमाया।
भर्ती मानसून ने आकर ------------------
लू थपेडे मार मार कर, झुलसा जाता तन।
बिन पानी के रहा न जाये, प्यासा ब्याकुल मन।।
बदली जाती काया ।
भर्ती मानसून ने आकर ------------------
बूँद-बूँद पानी को तरसें, पानी हुआ सफाया ।
दिनचर्यायें रूकी हैं सारी, एक वक्त है खाया ।।
गरम रितु की अदभुद माया ।
भर्ती मानसून ने आकर ------------------
जिसको कटे मधुमक्खी, आँखें हो जा जाये नम ।
कैसे अपने जिले में जाये, सब को सताये गम।।
अनहौनी ने पैर जमाया।
भर्ती मानसून ने आकर ------------------
होले-होले वक्त बीतता, हुये सभी सत्कार।
आशायें जाने की आयीं, तभी मिली दुत्कार।।
कहँ जायें अब मन पगलाया।
भर्ती मानसून ने आकर ------------------
रेन बसेरा छुट गया, छत में किया आराम।
सडक किनारे पडे हुये हैं, बस में रखा सामन ।।
ऐसा भी दिन आया ।
भर्ती मानसून ने आकर ------------------
20 दिनों की करी तपस्या, मिला एक वरदान।
अपने-अपने जिलों को जाओ, करो जमा सामन ।।
सतयुगी परिणाम आया।
भर्ती मानसून ने आकर ------------------
शुक्रवार, 16 जनवरी 2009
प्रेमियों की दशा
त्याग करे सब राजसी, कष्ट सहे, सुख पाये ।।
नाद प्रेम में जाल फ़ँसे, प्रान गमा सुख पाये ।।
दीप प्रकाशित, प्रेम आकर्षित, चुम्बन लेने पतंगा आये ।
जलकर तभी भस्म हो जाये, देह त्याग सुख पाये ।।
शशि गर्व में चूर, चातक प्रेमी आश लगाये ।
शशि समझ अंगारा लिपटे, शरीर त्याग, सुख पाये ।।
उदित रवि खिलजाये कमल, प्रेमी फ़ूला नहीं समाये ।
रविप्रताप से सूखकर, नष्ट होत सुख पाये ।।
स्वाति-पपीहा प्रेम अनौखा, बूँद स्वाति प्यास बुझाये ।
मेघा, सागर त्याग कर , पीउ-पीउ चिल्लाये ।।
प्रेमी दशा अथाह, जा में कुछ न सुहाये ।
मोहित होकर मन हरे, दुख होय सुख पाये ।।
गुरुवार, 31 जुलाई 2008
खुपिया बज्र
करके चैलेन्ज ए-मेल भेजते, हुई सरकारें फेल ।।
हुई सरकारें फेल, नेता तू-तू मैं-मैं करते ।
भोले-भाले निरीह लोग, बेवजह निर्दोष मरते ।।
कभी साईकिल-कभी टिफिन में, दहशतगर्दी बेश ।
पल भर में क्या हो, भय में सारा देश ।।
आम नागरिक नहीं सुरक्षित, रहा कराह समाज ।।
रहा कराह समाज, सरकारें ढाढस बधाएं ।
घायल-मरने बालो को, रूपये देकर मरहम लगाएं ।।
सयंम-सयंम बोली रटते, इनके तरह-तरह के रूप ।
ऐसा समय आज है आया, हुई नाकाम बुलेटप्रूप ।।
सुरक्षा ऐजेन्सी नाकाम, केन्द्र-राज्य हैं दूर ।
राजनीति कर रोटी सेंकें, जनमानस मजबूर ।।
जनमानस मजबूर, लालच में आ जाता ।
दंगा-फसाद, तकलीफें सहता, फिर भी समझ न पाता ।।
नवीन तकनीकि आतंकी, सीख के देते परीक्षा ।
अपना वही पुराना ढर्रा, खतरे में आज सुरक्षा ।।
आज देश की सभी ऐजेन्सी, आपस मैं मिल जाओ ।
नाश हो आतंकवाद का, ऐसा बज्र बनाओ ।।
ऐसा बज्र बनाओ, सुदृढ हो खुपिया तंत्र ।
सुख-सुविधाओ से परिपूर्ण हों, इन्हें दो ऐसा मंत्र ।।
बाहर से दुश्मन दिखता है, घर के भेदी इन्हें न लाज ।
आतंकवाद का हो सफाया, ऐसा कानून लाओ आज ।।
मंहगाई
बिन ईधन के चलना मुश्किल, सब की हालत खसता है ।।
सब की हालत खसता है, ईधन हुआ मंहगा नशा ।
अमेरिका-ईरान संबंधों से, हुई यह दुर्दशा ।।
कच्चे तेल की बढती कीमत, परेशान हैं आज सभी ।
दादा गिरी, आपना असत्तव, असर दिखाये कभी-कभी ।।
बिगडा पर्यावरण, कहीं है बाढ-कहीं है सूखा ।
कृषि उत्पादन कमी आई है, आज किसान है भूखा ।।
आज किसान है भूखा, लागत ज्यादा उत्पादन कम ।
कर्जा चुका नहीं है पाता, तोड रहा है दम ।।
सुरसा जैसा मुँह फैलाये, मंहगाई ने झिगडा ।
विदेशी आनाज मगाया, देशी बजट है बिगडा ।।
मकान, सोना चाँदी, हुई आज है सपना ।
बेरोजगारी बढती जाती, रंग दिखाती अपना ।।
रंग दिखाती अपना, आज है मुश्किल शिक्षा पाना ।
भ्रष्टाचार का जाल है फैला, योग्य-अयोग्य न जाना ।।
शादी के संजोये सपने, मंहगाई फीके पकवान ।
कर्मचारी, मजदूर, किसान, बचा सके न आज मकान ।।
कभी भूनते तंदूरों में, बाहुबली चलाते देश ।।
बाहुबली चलाते देश, धर्म-जाति आपस लडबाते ।
सत्ता में आ जाते , वेतन सुख-सुविधाएं पाते ।।
सब कुछ मंहगा मौत है सस्ती, लाज के ये क्रेता ।
कुछ नही सिद्धांत इनका, भ्रष्ट आचरण नेता ।।
दर-दर बढती जनसंख्या, भूमि है स्थाई ।
कृषि भूमि में बनी हैं बस्ती, ऐसी नौबत आई ।।
ऐसी नौबत आई, जनसंख्या पर रोक लगाओ ।
नूतन तकनीती से, आवश्यकता पूर्ण कराओ ।।
विज्ञानकों का कर आव्हान, अबिष्कार को कर ।
पर्यावरण का कर संरक्षण, रोको मंहगाई की दर ।।
यही है भैया सावन
सावन आयो-बर्षा लायो, इन्र्द धनुष की रचना ।
सजनी चली मायके अपने, साजन देखें सपना ।।
साजन देखें सपना, मिलन की बाँधे आस ।
वैरी पपीहा पिहु-पिहु बोले, विरह बढाये प्यास ।।
डाली-डाली-डले हैं झूले, मौसम हुआ सुहावन ।
सखी-सहेली करें हठकेली, झूम के आया सावन ।।
हरियाली की ओढ़ चुनरिया, वर्षा रानी आई ।
पैरों में झरनों की झर-झर, पायलिया झनकाई ।।
पायलिया झनकाई, रंग-बिरंगे पुष्प खिले बालो में हो गजरा ।
नदियाँ-नाले कुआँ तल ईयाँ , चारों ओर नीर का कजरा ।।
मयूर नृत्य कर रहस रचाये, चाल चले मतवाली ।
उगी हैं फसलें भाँति-भाँति की, गहना पहने हरियाली ।।
गये पिया परदेस भीगें तन-मन, बढती जाये पीर ।।
बढती जाये पीर, तन में आग लगाये ।
कुहू-कुहू कोयल की बोली, मन में हूक उठाये ।।
विरह की मारी दर-दर डोले, इन्तिजार में कामिनि ।
आजाओ मिल जायें ऐसे, जैसे मेघा-दामिनि ।।
सावन के शुभ सोमवार, महाकाल की पूजा ।
चले काँबडिया अमरनाथ को, ऐसा नहीं है दूजा ।।
ऐसा नहीं है दूजा, भाई-बहिन का प्यार ।
रक्षाबंधन ऐसा बंधन, राखी का त्योहार ।।
हाथों मेंहदी रचाई, रहे सुहाग पावन ।
तरह-तरह मिष्ठान बने हैं, यही है भैया सावन ।।
शुक्रवार, 11 जुलाई 2008
सृष्टि रचना
मन में भाव जगा देती हैं,
करतीं हैं जब बात ।
ईश्वर तेरी अदभुत रचना,
आँखों सी सौगात ।।
मंथन से निकला अमृत जल,
सुरों को पान कराया ।
धरा रुप विष्णु ने मोहिनी,
असुर न जाने माया ।।
हुये देवगण अजर अमर,
सम्मोहन शक्ति नें दी मात ।
ईश्वर तेरी ..........
सृष्टिकर्ता ब्रम्हा जी ने,
ऐसा खेला खेल ।
कामदेव को भस्म कराकर,
शिव-शक्ति का मेल ।।
शुरु हुआ सृष्टि विकास,
त्रिनेत्र बदले हालात ।
ईश्वर तेरी ..........
गुरुवार, 21 फ़रवरी 2008
प्रेरणा

ये पत्थर की मूरत मोहनी सूरत, सत सत तुम्हें प्रनाम ।
यह गीत समर्पित आपके नाम ।।
मेरा मन से साथ दिया, हम इसे भूल ना पाये ।
प्रेरणा आपकी पाकर हम, गद-गद फूले नही समाये ।।
धन्य हूँ मैं जो आपके कारण, हुआ है मेरा मान ।
दर्शन पाकर मन में रखकर, कार्य किया जाता है ।
कठिन से कठिन कार्य भी, पल भर में हो जाता है ।।
कभी क्रोध की कभी शुशोभित, आभा है मुसकान ।
बसी हृदय में छबि आपकी, रहती सुबह और शाम।।
ये पत्थर की मूरत ------------------
मैने जिसको दिल से माना, हुआ ना वो हमारा।
उसी की खातिर टूट गया, अपना दिल बेचारा ।।
यदि बिश्वास उठा दुनिया से, क्या होगा अनजाम ।
ये पत्थर की मूरत ------------------
जिस जिस पर है किया भरोसा, उसी ने है मुंह मोढ़ा ।
कही का नही है छोडा, हो गये वे अनजान।
ये पत्थर की मूरत ------------------
यादों में रोते रोते, रशिक हुये बेहाल ।
इसी में गुजरे साल ।।
आपके प्रति आज हृदय में, श्रध्दा और सम्मान ।
ये पत्थर की मूरत ------------------
हमें आप पर पूर्ण भरोसा, बिश्वास जगाये रखना ।
टूट ना जाये सपना ।।
बिश्वास पर जग कायम है, उसका रखना ध्यान ।
ये पत्थर की मूरत ------------------
प्रीत

ये कैसा अनुपम नाता, मन में प्रीत जगाता ।।
पहले होती है तकरारे, फिर हो जाता प्यार है ।
फिर होता दीवानापन, जिसकी दोस्ती मिशाल है ।।
कहां से आये कहां जाना, किस्मत का ये खेल है यार ।
कितना पावन स्थल यह, जहां पनपता अपना प्यार ।।
सुख दुख में हम साथ रहे, नाते हुये पुराने ।
साथ में रहकर कुछ नही जाने, जुदा हुये तब जाने ।।
रात ना देखें दिन ना देखें, यादें आना जाना ।
तनहाई में यादें संजोयें, प्रेम में मन बौराना ।।
नेत्रों से ओझल होते ही, दिल में आन समाना ।।
बुधवार, 20 फ़रवरी 2008
पहेली

जिस पल बेटी बनी धरा पर, खुशियाँ छाई बजी बधाई ।।
बाबुल की लाडली, बीरन की बहिना कहलाई ।
नारी शब्द बना पहेली, ---------------------------------------
चलते- फिरते गिरी भूमि पर, चोट लगी चिल्लाई ।
माँ ने लगा लिया आँचल से, थपकी दे-दे लोरी सुनाई ।।
दादाजी ने सुना कहानी, परी लोक की सैर कराई ।
नारी शब्द बना पहेली, ---------------------------------------
स्कूल पढने जाना, माँ का हाथ बटाना ।
सुसंस्कार पाये जीवन में , सीखा मान बढाना ।।
सदा रहे जीवन खुशहाल माँ से विध्या पाई ।
नारी शब्द बना पहेली, ---------------------------------------
धीरे-धीरे बडे हुये, बीत गया सब बचपन ।
अपना आँगन अपने नाते, सबने दिया अपनापन ।।
हुये सयाने मात-पिता को, शादी चिन्ता आई ।
नारी शब्द बना पहेली, ---------------------------------------
नाडी गुण मिलाते- फिरते, कुंडली गुण- अवगुन ।
धन लोभी दहेज माँगते, दर-दर भटक रहा मन ।।
'मृगतृष्णा' समान, अंधीं वर ढुडाई ।
नारी शब्द बना पहेली, ---------------------------------------
शहर-गांव खोजते घूमे, खाता पीता घर हो ।
कुल में मान, समाज प्रतिष्ठा, ऐसा बेटी वर हो ।।
सुसंस्कार भंडारो बाला, हो हमारा जमाई।
नारी शब्द बना पहेली, ---------------------------------------
वर -बधु के मधुर मिलन की, शुभ बेला है आई ।
दो कुटुम्ब हुये है एक, रब ने जोडी बनाई ।।
अरमानों के सपने सहेजे, गूँज उठी शहनाई।
नारी शब्द बना पहेली, ---------------------------------------
बीज से बनता पौधा, पौधा से पेड बने ।
पेड मे, लगी कली, कली से पुष्प बने ।।
पुष्प है बेटी माली बाबुल, ईश्वर ने यह रीति बनाई ।
नारी शब्द बना पहेली, ---------------------------------------
पुष्प लगे-लगे मुस्काये, बगिया रहे महकाये ।
अनजान सफ़र का राही, तोड इसे ले जाये ।।
बडे जतन से पाला पोषा, रितु जुदाई की आई ।
नारी शब्द बना पहेली, ---------------------------------------
माली बिलखा जाये, बीरानी बगिया छाये ।
सूनी बगिया देख के माली, पल-पल नीर बहाये ।।
बेटी पराया धन है, होती सदा पराई ।
नारी शब्द बना पहेली, ---------------------------------------
जैसी बगिया बबुल महकी, बेटी बैसी महकाना ।
अपने गुणों से बशीभूत कर, खुशियाँ सदा लुटाना ।।
सास- ससुर की सेवा में, रहना सदा सहाई ।
नारी शब्द बना पहेली, ---------------------------------------
रहन-सहन घर आँगन नूतन, नूतन, रिस्तेदार ।
पुनर्जन्म होता नारी का, जीवन में कई बार ।।
अनजाने लोगों में रह कर , नीचट पैठ बनाई ।
नारी शब्द बना पहेली, ---------------------------------------
मंगलवार, 19 फ़रवरी 2008
मिलन


कलियाँ खिल कर फूल बनी, भँबर लगे मडराने ,।।
मौसम आसकाना, चलन लगी पुरवाई।
गूँज उठी शहनाई, रितु मिलन की आई।।
दिनकर बन आ जाओ, मन पंकज खिल जाये ।
शशि आभा की आश लगाये, खिलने कुमुदनी मचलाये।।
चातक मन गगन निहारे, बन चंदा, दे जा दिखाई ।
गूँज उठी-------------------------------------------------
एक बूँद स्वाति का पानी, सीप लगाये आश ।
मोती बन आ जाओ सजना, तुम सजनी के पास।।
देके अलौकिक यह नजराना, हिय में जाओ समाई ।
गूँज उठी-------------------------------------------------
मयूर नृत्य कर रहस रचाये, पपीहा चला बुझाने प्यास ।
मेघ चले भूमि से मिलने, सरिता चली सागर के पास ।।
इंद्रजाल में हुई बाबरी, रितु पावस की आई ।
गूँज उठी-------------------------------------------------
कैसे कटते दिन है उनके , कैसे कटती रतियाँ ।
मदमस्ती में खो-खो जाती, मिलन की करती बतियाँ ।।
साथ में खेली सखी सहेली, उनकी हुई सगाई ।
गूँज उठी-------------------------------------------------
मेरे सपनों के राजकुमार, हम हुये दीवाने ।
पल-पल तेरी राह देखती, आ जाओ अन्जाने ।।
दिल में मचा तूफान, कहाँ छिपे हरजाई ।
गूँज उठी-------------------------------------------------
नयन बिछाये राह निहारू, , मुझे पहनाओ कंगना ।
दीपक बन आ जाओ सजना, करो प्रकाशित अंगना ।।
मचल-मचल जाये मन, रितु बसंत की आई ।
गूँज उठी-------------------------------------------------
शिल्पकार पत्थर को गढके, मूरत में सजीबता लाये ।
जौहरी हीरा तरासे, तभी चमक है आये ।।
मन मंदिर में आन विराजो , सुनलो अरज हमाई ।
गूँज उठी-------------------------------------------------